Sunday 2 October 2011

दो लघु कथाएं

 शिकार
संटा सिंह, प्रो. बंटा सिंह को अपने शिकार की कहानियाँ सुना रहा था.
मैं अपने ४-५ दोस्तों के साथ शिकार पर गया था.दोस्त देखना चाहते थे कि शिकार कैसे किया जाता है. मैं घने जंगल के बीचों-बीच एक खूंखार शेर को ढूँढ रहा था, जिसने आस-पास के गांवों में आतंक फैला रखा था. मेरे मित्र, मेरे पीछे-पीछे  चल रहे थे. अचानक झाडियों के पीछे मुझे कुछ हिलता हुआ नज़र आया. मैंने आव देखा न ताव, झाडियों पर निशाना साध कर दनादन २-३ गोलियाँ दाग दी और मित्रों ने झाडियों के पीछे जाकर देखा कि शेर मरा हुआ पड़ा था.

प्रो.बंटा सिंह,संटे,  आखिर शेर कितने दिनों से मरा हुआ पड़ा था, बाद में कुछ पता चला?

गोली
शाम का समय था. बाहर दरवाजे से हल्की सी रौशनी आ रही थी. खिड़कियाँ बंद थीं. बिजली चली गयी थी. और अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. कहीं से कोई आवाज़ भी नहीं आ रही थी. प्रो.बंटा सिंह कमरे के एक कोने में कुर्सी पर बैठा, सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर कुछ सोच रहा था. वह कुछ व्याकुल सा लग रहा था,
तभी उसके घनिष्ठ मित्र संटा सिंह ने आकर पूछा,
बनटे, क्या बात है ? परेशान सा क्यूँ लग रहे हो?

क्या बताऊँ सनटे, दो-तीन दिन से कोई भी चुटकुला सूझ ही नहीं रहा है, इसलिए सर दर्द से फटा जा रहा है, तुम कुछ करो.

ठीक है, मैं अभी आता हूँ, कहकर संटा सिंह कमरे से निकल कर चला गया.

कुछ देर बाद, अचानक भड़ाक से किसी ने कमरे की एक खिडकी को ठेल कर खोल दिया और एक गोली प्रो.बंटा सिंह के सर से टकरायी. गोली उसके सर से टकरा कर उसके सामने टेबल पर गिरी. प्रो.बंटा सिंह ने देखा, वह एक सर-दर्द की गोली थी जिसे संटा सिंह ने खिडकी के बाहर से उसकी ओर फेंका था.

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