Thursday 6 October 2011

बेताल का अंत

बेताल बर्षों से राजा विक्रमादित्य को अपनी चतुराई से मात देता आ रहा था  और उसकी बुद्धि को धत्ता बताकर मज़े में पेड़ पर उल्टा लटका रहता था.
    लेकिन विक्रमादित्य ने हठ नहीं छोडा. हमेशा की तरह शव को पेड़ से उतारा, अपने कंधे पर रखा और श्मशान की ओर चल पड़ा. लेकिन इस बार उसने कुछ निश्चय कर लिया था, हमेशा  के लिए उसे ठिकाने लगाने के लिए.वह अच्छी तरह जानता था कि इस बार भी बेताल उसे बातों में उलझा कर उसके मौन को भंग करने का अथक प्रयत्न  करेगा.मौन भंग होते ही वह उसके चंगुल से निकल जायेगा और वह कुछ नहीं कर पायेगा तथा उसका सारा परिश्रम व्यर्थ हो जायेगा.
    उसने आत्म-मंथन और गंभीर चिंतन किया. अंत में उसने हल ढूंड ही  निकाला.
    इस बार पर शव को कंधे पर लेकर जब वह जाने लगा तो चतुर बेताल हमेशा की तरह राजा को कहानी सुनाने लगा. कहानी ध्यान से सुनते हुवे, इस बार विक्रमादित्य आराम से पान-मसाला अपनी जेब से निकाल कर खाने लगा. कहानी के अंत में बेताल ने हमेशा की तरह एक कठिन प्रश्न पूछा और उसने चेतावनी दी कि उत्तर न देने पर राजा के सर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे. बेताल निश्चिन्त था कि बुद्धिमान विक्रम चुप नहीं रहेगा और अपना मौन भंग अवश्य करेगा. मौन भंग होते ही वह फिर विक्रम के बंधन से  मुक्त हो जायेगा.
    लेकिन यह क्या ! राजा विक्रमादित्य ने अपने दूसरे कंधे पर लटके केनवास के थैले से लैपटॉप और हेडफोन निकाला. हेडफोन का जेक्, लेप-टॉप के वॉईस आउट-पुट से कनेक्ट किया और उसने दोनों हेडफोन शव के कानो में ठूंस दिए. फिर प्रश्न का सही उत्तर उसने आनन्-फ़ानन में डिस्प्ले पर टाईप कर लिया और उसे वॉईस में कन्वर्ट कर बेताल को फुल वॉल्युम् में सुना दिया.
   बेचारे बेताल की तो सिट्टी-पिट्टी गुम! काटो तो खून नहीं, और वैसे भी शव का खून होता ही नहीं ! राजा ने उसकी दोनों शर्तों को निर्विघ्न पूरा कर दिया था और उसके मुक्त होने का चांस अब जीरो हो गया था. उसे सदियों से रह रहे अपने उस परमानेंट रेसीडेंस को, यानि कि उस शव को  मजबूर होकर छोड़ना पड़ा.
   राजा विक्रमादित्य ने बड़े आराम से पान-मसाला का दूसरा डोस लिया और शव को श्मशान में ले जाकर उसका अंतिम दाह-संस्कार विधिवत कर दिया. इस तरह सदियों बाद बेताल का अंत हो गया.

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